सफलता का दूजा ये मंतर न रखना
कभी कथनी-करनी में अंतर न रखना
भले हमसे तारीख़ कहकर न रखना
महीना हो कोई, नवम्बर न रखना
हमेशा रहे जिसका एहसास ऐसा
कोई दिल में यादों का खंडहर न रखना
मिटा दे जो माज़ी की यादों को दिल से
कोई ऐसा एहसास लिखकर न रखना
तिरे बिन भी रहना पड़े मुझको तन्हा
कोई ऐसा लम्हा मयस्सर न रखना
सफलता न जिसमें नज़र तुमको आए
तो बेकार कोशिश निरन्तर न रखना
अगर मित्र की मित्रता नापनी है
तो हाथों में धोखे का खंजर न रखना
बनाएगी दुनिया तमाशा हमेशा
तुम आंखों में कोई समंदर न रखना
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद