हादसे में जान बच भी सकती।
बदनसीब हुई तो जा भी सकती।।
लिखा आया नसीब माँ के हाथो।
माँ की निगाह उम्दा हो भी सकती।।
खुद शाख से गुल टूटते हुए देखा।
हौसले बुलंद तो सम्भल भी सकती।।
तन्हा किसी को समझने की भूल।
'उपदेश' उसे तन्हा कर भी सकती।।
मिट्टी का बदन मिट्टी में मिल जाएगा।
जन्मभूमि से आस बढ़ भी सकती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद