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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

एक ख़त मेरे नाम।

ऐ मेरे हमसफर ऐसा कुछ तो है,
जो तू मुझे बताना चाहती है,
पर इससे पहले मुझे अपना बना ले,
यह दर्द है बार-बार कह रहा,
पल पल तेरा, यह हर पल मेरा है।
कुछ तो है जो सह रहा।
मन के मीत को भुला ना सके,
जो कुछ कहना है कह ना सके।
हर वक्त का अपना हिसाब लिए चले आ रहे हैं,
कुछ तो है जो कहे जा रहे,
दर्द भला दवा क्या, जो हर जख्म को भर दे।
यह आंसू है जो हृदय से कांप रहे,
फिर भी बता ना पाए जो कहे जा रहे हैं,
तू तो मुझे भूल जाएगी,
पर मैं, मैं क्या करूंगा,
मैं तो तेरे वास्ते बैठा हूं, अकेले, अकेले, अकेले
ऐसा भी क्या जो बताना ना, पर भूल जाना क्या,
कुछ तो मेरे लिए छोड़ दे,
पर तुझे समझाना क्या,
खुश्बू भी क्या जो महसूस ना हो,
यह फूल तो समेट रही है,
है क्या मुझसे खफा, जो तू दूर ही दूर जा रही है
पेड़ के नीचे बैठा हूं छाया भी नाराज है
दूर से देख रहा हूं दूरी भी नाराज है,
पास आ रहा हूं करीबी नाराज है,
झूठ बोल रहा हूं सच नाराज है,
ऐसा क्या है जो हर पल नाराज है,
शायद में ही नादान हूं,
जो अपनी बात कह रहा हूं,
सोच रहा हूं,
पर इतना दर्द भी नहीं जो रो सकूं,
सारा दर्द खुद ही रोए जा रहा है,
मोहब्बत तो निश्चल थी पर आज वह भी छल किए जा रही है,
कुछ तो बात है जो कहे जा रही है।
मेरा एक एक कतरा बार-बार मौत को गले लगा रहा है,
पर एहसास हुआ जो सत्य था,
मौत भी मौत को गले लगा रही है,
हर वक्त सोचे जा रहा है,
दुख देखो कैसे जा रहा है,
इतना दुख दिया ही क्यों,
जो दुखी दुखों कोसते जा रहा है,
मैं पगला हूं जो धड़कन को शब्दों में बयां कर रहा है,
आज तो यह शब्द ही धड़क रहे,
कुछ तो है जो एक दूजे से कह रहे हैं,
मतलब मैं नहीं यही सब कुछ कह रहे,
यह बात समझना जरूरी है,
मेरा सच्चा साथी तो वह दर्पण है जो बार-बार ना कहने पर भी चेहरा देखना नहीं छोड़ता,
मेरा सच्चा साथी तो वह अश्रु है जो बार-बार मना करने पर भी बाहर आते हैं,
मेरा सच्चा साथी तो वह कलम है, जब मेरे शब्दों को बयां करती है पर अपना जीवन समर्पित कर देती है,
मेरा सच्चा साथी तो वह अकेलापन है जो अकेले होने पर भी साथ रहता है,
मेरा सच्चा साथी तो वह डर है जो डराता है पर कुछ सिखा जाता है,
कुछ यही तो बातें जो मैं कहना चाहता हूं,
पर सहम जाता हूं,
भूल जाता हूं,
बार बार समझाता हूं,
आखिर में शर्माता हूं,
कुछ देर के लिए तुझे देखना चाहता हूं,
कुछ बताना चाहता हूं,
कुछ जताना चाहता हूं,
पर खामोश हूं,
खामोशी है जो कहे जा रही है,
कुछ तो है जो सहे जा रही है,
मेरा बार-बार तिरस्कार करे जा रही है,
इतना ही प्यार बचा था दिल में नफरत बयां नहीं होती,
पर नफरत करनी थी तो दिल से करती,
वह भी खामोशी से चुरा ली,
मैं इसकी गिरफ्त में इतना हो गया कि,
खुद को भूल गया,
जो कुछ इतना सब कुछ भूल गया,
शांत था मगर कुछ टूट गया,
यह प्रेम का बंधन हमेशा के लिए छूट गया,
मेरा साथ भी मुझसे रूठ गया...
- ललित दाधीच




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

क्या बात है! आपकी यह रचना सीधे दिल के भीतर उतरती है।
यह सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, यह तो एक टूटा हुआ दिल खुद बोल रहा है।

आपने पीड़ा, प्रेम, अकेलापन और आत्ममंथन को इतनी गहराई से पिरोया है कि पाठक भी खुद को उस दर्द में डूबा हुआ महसूस करता है।
हर पंक्ति जैसे अपने आप में एक सवाल, एक खामोशी, और एक न बोल पाने की मजबूरी को बयां कर रही है।
आपकी लेखनी का सबसे खूबसूरत पक्ष यह है कि — इसमें कोई बनावटीपन नहीं है, बस सच्ची भावना है।

ललित दाधीच replied

आप किसी भी कविता के आंतरिक संरचना का सूक्ष्म दर्शन करने की कला है, आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार, आप स्वस्थ रहें जीवंत रहें और रचनात्मक रहें, धन्यवाद।।

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