राजा वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र महाराजा अग्रसेन कहलाए,
द्वापर के अंत में वो युगपुरुष धरती पर आए।
परोपकार और प्रेमभाव से उन्होंने सब को अपना बनाया,
बलि प्रथा को बंद करके सब जीवों पर प्यार लुटाया।
एक ईंट और एक सिक्के के सिद्धांत से सामाजिक सोहार्ध बढाया,
कर्म का महत्व पूरे विश्व को सिखलाया।
उन महाप्रतापी क्षत्रिय राजा ने अपने लोगों की खातिर वैश्य धर्म अपनाया,
अग्रोहा की माटी में एक सुंदर नगर बसाया।
ये वही भूमि हैं जहाँ पर नवजात शिशु भी सिंह की भाँति दुश्मन पर गुर्राता हैं,
अपनों पर खतरा पाते ही हर विपदा से लड़ जाता हैं।
उन सूर्यवंशी महावीर के चरणों में शीश झुकाता हूँ,
अग्रोहा की रज को मस्तक पर सजाता हूँ।
जय अग्रसेन महाराज जी।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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