दुनियादारी के अगम्य सफर में ,
निगाहे तुम फेर भी लिया करो ,
चलते-२ दो - चार पल रुककर ,
हाल -ए - दिल जान लिया करो ,
वक्त की पगडंडियां टेढ़ी हैं यहां,
पांव से लकीरें उकेर दिया करो,
भटके हुए मुसाफिर कई हैं यहां,
बसेरे की दिशा दर्शा दिया करो ,
वो भी कभी हमसफर थे "राज ",
जीने की राह बता भी दिया करो !
✒️ राजेश कुमार कौशल