भटक रहा हूँ मैं उसकी तलाश में,
पास रह कर भी नहीं जो पास में।
जितनी पीता, उतनी बढ़ती प्यास,
मर न जाऊँ, प्यास की, प्यास में।
मैं अँधियारे का हूँ बेताज बादशाह,
आँखें चौंधियाती ये तेज प्रकाश में।
खुद को भूल कर ही, हूँ मैं ज़िन्दा,
मर जाऊँ, आऊँ जो होशोहवास में।
मैंने छिपा रखा है कस्तूरी नाम में,
महकने लगोगे तुम इस सुबास में।
🖊️सुभाष कुमार यादव