ना चाह किसी की
ना हीं कोई ख्वाहिश है।
है दिल में मेरे प्यार भरा
कुछ लेने की नहीं बल्कि
देने की चाहत है।
सिर्फ प्यार लूटने की चाहत है।
यारों बचपन से ज़वानी तक तो
सभी से कुछ ना कुछ तो हमसभी
लेते हैं।
पर ज़वानी में अब तो उनकी बारी है
हमसे कुछ पाने की
चाहत उनकी पूरी होने की ।
तो आइए हम सब अब
अपने माता पिता देश समाज को
कुछ देते हैं ।
जिन्होंने हमारी सर्वांगिक विकास के लिए
अपना सबकुछ लगा दिया।
नहीं तो रहेगा हमें ताउम्र एहसास की हमनें उनके लिए कुछ ना किया।
सिर्फ लिया और कुछ ना दिया।
इसलिए मैं ये कहता हूं .. कि..
हां मैं अब सबकुछ लौटना चाहता हूं ।
माता पिता की खुशियां जिसे उन्होंने हम पर लुटाया।
गुरुजनों का आशीर्वाद जिसने हमें लायक बनाया।
पूरा समाज देश अपना अपनी दुनियां अपने लोग जो पल पल हर पल साथ निभाया ।
मेरी जिंदगी को जिंदगी बनाया।
मैं भी उन्हें वो सबकुछ लौटना चाहता हूं
है कर्ज बहुत बड़ा मुझपार
अब अपने फ़र्ज़ से हर कर्ज पूरा करना चहता हूं..
मैं सिर्फ़ प्रेम हीं प्रेम
प्यार ही प्यार लौटना चाहता हूं
सबके दामन में खुशियां हीं खुशियां भरना चाहता हूं..
सबके दामन में खुशियां हीं खुशियां भरना चाहता हूं..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




