हर महिने का हिसाब किताब नाम से रहा।
उप्र से वास्ता नहीं रूहानी अंजाम से रहा।।
जैसे जैसे शुरुआत हुई अन्त ही नहीं हुआ।
क्या पाया क्या खोया वास्ता काम से रहा।।
ऐसा लगता साल दर साल उम्मीद में जीना।
तुम्हारे बिन ज्ञान 'उपदेश' श्री राम से रहा।।
तकरार का सिलसिला जिन्दगी का हिस्सा।
जैसे रात का तमस से प्रेम का शाम से रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद