लफ्ज ठहर गये गुमशुदगी सब कुछ कह गई।
कमी थी बरसात की वह भी रुककर रह गई।।
जीवन में उम्मीद का सूरज धीरे धीरे ढल रहा।
सोचती हूँ पुरानी बातें अन्दर जमकर रह गई।।
आप बीती किससे कहें पतझड के मौसम में।
होंठ खुले नही 'उपदेश' जुबाँ डर कर रह गई।।
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आप बीती किससे कहें पतझड के मौसम में।
होंठ खुले नही 'उपदेश' जुबाँ डर कर रह गई।।