हवा भी जिस्म को छूकर झूमने लगी।
शरारत मन में हुई तभी से पूछने लगी।।
सारे माहौल में घटायें छाने से खुश थी।
चाँद निकलने को था रूह जूझने लगी।।
तभी बेताब मन ने अंगड़ाई लेकर कहा।
वो आई 'उपदेश' नजर को सूझने लगी।।
एक क्षण ने बदले हालात हौसला बढ़ा।
फुर्र हो गई बेचैनिया दिल से पूजने लगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद