अपने वायुसेना के कार्यकाल के दौरान मुझे समाजशास्त्र में पी एच डी के लिए डा बी एस बरार, प्रोफेसर, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर
द्वारा साभार अनुमति और मुलाक़ात पत्र मिला. जालंधर में कार्यरत मैं अगले दिन ही फ्रंटियर मेल से अमृतसर गया और उन्होने बहुत शालीनता से आवश्यक बातें समझाईं और चलने से पहले प्रो सतीश सब्बरवाल की रिसर्च पुस्तक मोबाइल मेन देते हुए सलाह दी कि मैं यह पुस्तक पढ़कर अपने अनुसंधान की हाइपोथीसिस तैयार करू एक सप्ताह बाद उन्हें प्रस्तुत करूँ.
उन्होंने यह भी कहा कि यह पुस्तक बहुत दुर्लभ और उनको भेंट की गई व्यक्तिगत प्रति है यह खोनी नहीं चाहिए. मैं उन्हेंप्रणाम कर स्टेशन पहुंचा और ट्रैन का टिकट लेकर बैठ गया. ट्रैन ने जैसे ही सीटी बजाई मुझे याद आया कि पुस्तक तो बुकिंग काउंटर पर ही रह गई.
चलती ट्रैन से जैसे तैसे उतर कर मैं बुकिंग की तरफ दौड़ पड़ा निरंतर ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि पुस्तक मिल जाये वरना मेरे आदरणीय गाइड का विश्वास मुझसे उठ जायेगा.
काउंटर पर बहुत लम्बी लाइन थी और मुझे आगे बढ़ता देख लोग चिल्लाने लगे. मैं परवाह किये बिना आगे पहुंचा और देखा कि पुस्तक विंडो के साइड मैं रखी थी. मेरी आँखों में खुशी के ऐसे आंसू थे जैसे कारू का खजाना मिल गया हो.
मेरे दिल ने आभार सहित माना कि ईश्वर हमेशा हमारी मदद करता है और हमेशा करता रहेगा.