मैंने जब पाँचवी कक्षा की परीक्षा दे दी तो मेरे समक्ष एक बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया. हमारे हैडमास्टर साब का आदेश था कि सभी बच्चे अपने अपने घर से पांच 2 रूपये लेकर आएंगे तभी टी सी दी जाएगी. उन दिनों यह राशि पहाड़ जैसी थी और घर से तो 4-6 आने से ज्यादा मिलना संभव ही नहीं था.
छुट्टियां हुईं और मैंने दिन रात ईश्वर से केवल पांच रूपये पाने के अनवरत मन में प्रार्थना शुरू कर दी. रात में नींद खुलती तो भी मैं पांच रुपये की प्रार्थना करता. 1 जुलाई को स्कूल खुलना था और मैं मायूस हो रहा था.
30जून को दोपहर मैं जब बाहर खेलने के लिए
गया तो रास्ते में एक कपडे की थैली मिली जिसमें एक एक रुपये के पांच सिक्के रखे थे.
अगले दिन स्कूल में हैडमास्टर साब को रुपये दिए तो बहुत खुश हुए क्यों कि कोई भी अन्य बच्चा दो रुपये से ज्यादा लाया ही नहीं था.
उस दिन से ईश्वर में मेरी अगाध आस्था और श्रद्धा आज तक अक्षुण है और उस दिन के बाद मैंने कभी परमात्मा से पैसे के लिए याचना नहीं की और ना ही भविष्य में करूँगा.