आंसूओं को रोका है मुस्कुराहट को टोका है
बेफिक्र होकर जी रही हूं और मैं खुश हूं
पांव में शिथिलता है , दर्द में तीव्रता है
मन में एक निराशा है , फिर भी मैं खुश हूं
मन के अंदर भीड़ है, भीड़ में गुमनाम हूं
रास्ता ढूंढ रही हूं और मैं खुश हूं
मैं शून्य हूं, एकांत हूं और एक प्रश्न भी
शून्य में मिल जाऊं, एकांत में रम जाऊं
जवाब चाहे मिले न मिले, मगर मैं खुश हूं
मैं अपनी उम्मीदों का आधार हूं
वक्त के अश्व पर सवार हूं, मंजिल का पता नहीं
सफ़र फिर भी ज़ारी है और मैं खुश हूं
घिर जाती हूं अंधेरों में, रौशनी नहीं मिलती
फिर भी मन का दीप जलाकर , मैं खुश हूं
थोड़ी सी ज़िद्दी हूं , थोड़ी सी मंदबुद्धि हूं
नहीं कोई इलाज इसका फिर भी मैं खुश हूं
हानि मुनाफे देखे बगैर रिश्ते निभाया है
दिल भी खूब टूटा है, फिर भी मैं खुश हूं
करने साजिशें आतीं नहीं, सियासी
दांव पेंच भाते नहीं, जिंदगी की दौड़ में
सबसे पीछे रह जाती हूं , फिर भी ,
जी भर के मुस्कुराती हूं तभी तो मैं खुश हूं ।
----पूनम झा