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बचपन से सीखा हमने नैतिकता, करुणा,प्रेम, सद्भावना का पाठ।
संयम, परोपकार, हितकारिता की पल्ले मारी गांठ।।
जियो और जीने दो की उक्ति बड़ी उचित है।
सभी जीव निड़र जिएं इस धरा पर यही शास्त्र सम्मत है।।
इंसान हैं हम, नहीं पशु जो किसी जीव का आहार करें।
दर्द सभी का एक समान फिर क्यों ऐसा व्यवहार करें।।
ईश्वर ने, प्रकृति ने धरा का ऐसा श्रृंगार किया।
जो चाहिए मानव को फूलों,वृक्षों, लताओं से लाद दिया।।
शाकाहार को अपना कर पाएं सुखी,तृप्त,स्वस्थ तन मन जीवन।
यही सच्चाई है, संतो,विज्ञान की सीख बड़ी पावन।।
सुमन गर्ग,
उत्तम नगर दिल्ली 59