हम कहते है
हम ही है इस धरातल पर
हम कहते है
मेरी ज़मीन
मेरी सम्पदा
पल दो पल में हम अधिकार जमाना चालू कर देते है
हम भूल जाते है जीव-जंतुओं को
हम भूल जाते है वृक्ष-लताओं को
हम भूल जाते है छोटे मोठे प्राणियों को
हम भूल जाते है तृण पौधों को
हम भूल जाते है सूर्य की प्रचंड शक्ति को
हम भूल जाते है धरा की अंतहीन गति को
हम भूल जाते है चाँद तारों को
हम भूल जाते है शक्तिशाली ब्रह्माण्ड को
हे भगवंत...
हम भूल जाते है तेरी असीम सत्ता को l
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️