"दहेज भगाओ बेटी बचाओ"
कब तक नारी अग्नि की भेंट चढ़ती रहेगी,
कभी जौहर,कभी सती प्रथा कभी दहेज ।
विवाह में खुशी से कभी उपहार दिए जाते थे।
उपहार ने विकराल रूप धरा दहेज का।
विवाह दो दिलों का मिलन नहीं।
लाभ का सौदा है।
बोली लगती वर की।
वधू गाय समान।
नारी कब तक अग्नि की भेंट चढ़ती रहेगी।
नारी है अन्नपूर्णा।
नारी को ही अग्नि में स्वाह किया।
दहेज दानवों ने ।
माता पिता दहेज की खातिर
दाव पर लगा देते जीवन अपना।
मां सारी खुशियां त्याग अपनी।
बेटी को सारी खुशियां देने को।
मुफ्त में मिले से संतुष्ट हुआ है क्या कोई?
कोई मांग करे गाड़ी की ।
तो कोई कैश की।
दहेज लोभियों से तंग आकर।
कितनी ही चढ गईं अग्नि की भेंट।
अरे पढ़ी लिखी सुंदर ,
बुजदिल, आग की भेंट चढ़ने
वाली नारी।
तुझसे तो अनपढ़ चंबल की फूलन अच्छी।
किया अस्त ,
ध्वस्त करने वालों को।
नारी जीने के लिए लज्जा से ज्यादा होंसलों की जरूरत होती है।
नारी कब तक अग्नि की भेंट चढ़ती रहेगी।
कभी जौहर, कभी सती, कभी दहेज।
रचनाकार -पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा ,अरेराज, पूर्वी चंपारण (बिहार)

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




