"अपना परिवार"
अपनेपन की बगिया है
खुशहाली का द्वार,
जीवन भर की पूंजी है
एक खुशी परिवार ।
मां की ममता में बसता है
बच्चों का संसार,
जीवन का रास्ता दिखलाए बापू की फटकार,
दादा दादी की बातों में है
जीवन का सार ।
भाई-बहन का रिश्ता है,
रिश्तो का आधार
घर की लक्ष्मी बनकर,
पत्नी देती है घर को आकार ।
बहू जहां बन जाए बेटी
होता स्वर्ग वहां साकार,
नाजुक डोरी रिश्तो की
मांगे बस थोड़ा सा प्यार ।
अहम छोड़ कर गर झुक
जाए बना रहेगा घर संसार,
टूटेगा हर सपना अपना
अगर बिखरता है परिवार ।
साथ अगर हो अपनों का
तो होगा खुशियों का अंबार,
आओ करें कामना ऐसी
बिखरे ना कोई परिवार,
मिलजुल कर सब साथ
रहे,
हर दिन हो जाए त्योहार ।
रचनाकार-पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा ,अरेराज ..पूर्वी चंपारण (बिहार)