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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

कवि और उसका लेखक:- प्रेमचंद एक नज़र

प्रेमचंद को पकड़ने की मेरी कोशिश कबीर से होकर गुजरती जहाँ से तुलसी के वो चौपाइयां और दोहे मर्यादा के पक्ष को भिन्न-भिन्न तरीकों से दर्शाती, पर उसे क्या पता जिसे पेट की परिभाषा नहीं पता कि यह भरता भी या खाली हो भी जाता है जब आपकी मूल आशा ही निराशा हो तो आप किस व्यवहार के नवीन विचारों को धारण करेंगे।जहाँ शिक्षा में आपको परोसा जा रहा भरोसा और कर्म पथ पर आते ही धोखे कितने प्रकार होते हैं यह आपको समझा दिया जाता, अब आपको चुनना है कि आप किसके लायक हो, चार्वाक ने अपने समय कही थी कि मैं उस विश्वास को लेकर जी नहीं सकता, जहाँ मैं अपने आनन्द के हिस्से छोड़ दूँ, दूसरी ओर कबीर धोखे और चापलूसी से सख्त नफरत करते थे और काम निकालने वाली परम्परा में जो आत्ममुग्ध रहते वो मनुष्य धरती के कीटाणु समान जो एक भोगी मानसिकता की परत से ढके हुए हैं जो सिर्फ एक धुएं की मांग करते हैं,कबीर ऐसे लोगों को अनुभव की नजर से देख चुके थे ऐसे लोगों को आत्ममंथन की जरूरत है। तुलसी और सूरदास के ज्ञान पटल में अधिक अंतर नहीं था ,था तो सिर्फ उनके आधार, आराध्य का और स्त्रोत पूर्णता का लेकिन यह तय है कि उनके विचार भी आधुनिक आचार संहिता और सत्य की गहराई,और सूक्ष्म से सूक्ष्म बिन्दुओं की ओर उनकी नज़र था, पर एक कमी का एहसास था उसका परिमार्जिकरण कौन करेगा, और किस विचार की कहाँ तक गरिमा होगा और प्रत्येक विचार अपने आपको व्यवहार दृश्यों कैसा रूख निभायेगा यह जानना जरूरी है।
ऐसी अन्तर्वेदना की आंधी और एकदम से अनुभवी और सजग समानता अनुभूति हुई ,वो थी उस शख्स की जो प्रत्येक विचार उसकी राह बता सकता, व्यवहार क्या यह समझा सकता, भूख क्या और उस रोटी की ऊर्जा को दृष्टि देकर समझा सकता, चिंतन कहाँ तक हो किसका है और पैसे और इंसानियत में कितना अंतर है उस अंर्तव्यवस्था को समझा सकता, प्रेमचंद, जिन्होंने प्रेम को असहाय रोग कह तो दिया पर जो विचारों का असहाय रोग उन्होंने दिया उस पीड़ा का इलाज कौन करेगा, वो विचार किस श्रेणी से आंएगे, अब वैसा चिंतन करने की प्रतिभा भी तो होनी चाहिए, आज जीव तो सब है पर सजीव कम है, चेतना तो पर अंतर्चेतना कम है, विचार तो है पर उनका आत्म मंथन नहीं है, प्रेमचंद एकमात्र लेखक जो यह स्वीकार करते आप पूर्ण रूप जीवन क्या इसको नहीं समझ सकते हैं आप से कोई ना कोई पक्ष छूट जाएगा और फिर उसी सुधार आप विवेक की सीमा को लांघ जाते हो, और नए मर्यादा के पर्दो से ढक लेते हो , विचार हो पर विचार का स्तर भी तो हो, प्रेमचंद का सरल व्यक्तित्व ही उनकी परिभाषा जो उन्हें हिन्दी का अनोखा लेखक बनाती है।।

" ये वही दरख्त है जो बूढ़ा नहीं हुआ,
अभी भी फल देता, छाया देता और,
पर यह तो देख लो हमारी सुरंगें,
इससे अड़ तो नहीं रही"।।




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