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कविता की खुँटी

                    

मूल्य आधारित शिक्षा

Oct 15, 2025 | आलेख | Dr. Chunnan Kumari  |  👁 39,663

मूल्य आधारित शिक्षा
मूल्य की अवधारणा नैतिक शास्त्र व धर्म से संबंधित है । धर्म, दर्शन व शिक्षा तीनों आपस में संबंधित है और तीनों का ही मूल्यों से संबंध है । धर्म एवं दर्शन का उद्देश्य नैतिक मूल्यों का विकास कर मानव के जीवन को अर्थपूर्ण बनाना है तो शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास कर उसके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन कर उसे समाज में सामंजस्य स्थापित करने योग बनाना है । सर्वांगीण विकास में जीविकोपार्जन हेतु कौशल प्राप्त करना भी आवश्यक है।
विद्यालय एवं महाविद्यालय में अनुशासनहीनता एवं हिंसक व्यवहार की घटनाओं को रोकने के लिए मूल्य एवं संस्कार आधारित शिक्षा महत्वपूर्ण है। भारतीय ज्ञान परंपरा में मूल्य परक शिक्षा का बड़ा महत्व है । शिक्षा संपूर्ण जीवन का सार है एवं इससे जीवन के आधारशिला का निर्माण होता है। मूल्य आधारित शिक्षा का अर्थ छात्रों को नैतिक मूल्यों, धैर्य, ईमानदारी, प्रेम, सद्भावना, दया, करुणा, मानवता आदि सार्वभौमिक मूल्यों को सीखना है। किसी भी समाज या देश की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों में शिक्षा के अतिरिक्त अन्य सभी मानवीय गुण विकसित होने चाहिए ताकि वह समाज को, देश को अधिक लोकतांत्रिक एवं सामंजस्य पूर्ण बना सके। यह तभी संभव होगा जब विद्यार्थी का शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और आध्यात्मिक आदि समस्त गुणों का सर्वांगीण विकास होगा । -“भारत ने अपनी नई शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा का तात्पर्य अध्यापकों, किताबों से प्राप्त जानकारी और सूचनाओं का संप्रेषण मात्रा नहीं है । उन मूल्यों, योग्यताओं और प्रवृत्तियों को विकसित करना भी है जो शांतिपूर्ण, न्यायोचित, समावेशी और टिकाऊ समाज के निर्माण के लिए विश्व समुदाय को एकत्र एवं प्रेरित कर विश्व-कल्याण में योगदान देने के लिए संकल्पबद्ध कर सके।“1
 मूल्य में पतन के कारण
आज सामाजिक, पारिवारिक एवं नैतिक मूल्यों के पतन के कारण हमें आए दिन अनेक प्रकार की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है । मूल्य में पतन के विभिन्न कारण है- जैसे औद्योगीकरण, तर्क का आधिक्य, असुरक्षा की भावना तथा आधुनिक दर्शन से मनुष्य भौतिकवादी होता जा रहा है । उसके लिए संपत्ति, धन एकत्र करना प्राथमिकता बन गया है और वह हमेशा ही इसके अर्जन में लगा रहता है । वहीं दूसरी तरफ भौतिकवादिता, पूंजीवादिता की इस दौड़ में पड़कर मनुष्य एक दूसरे के प्रति असुरक्षित महसूस करने लगा है । अहमभाव भी चरमोत्कर्ष पर है जो कभी-कभी नकारात्मक दिशा भी ले लेता है। इन सभी अवगुणों नकारात्मक भाव एवं विचारों के कारण मूल्य में गिरावट आई है।
 मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता क्यों है?
वर्तमान समय में शिक्षा के स्तर में जो गिरावट परिलक्षित हो रही है, उसका बहुत बड़ा कारण है कि हमारे शिक्षा का विकास विज्ञान व तकनीकी आधारित शिक्षा पर तथा आर्थिक समृद्धि प्रदान करने वाले शिक्षा पर जोर दिया गया। गुणवत्तापरक विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा जहां तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश के लिए विद्यार्थियों को तैयार करती है वही मूल्य पर आधारित शिक्षा उन्हें जीवन की वास्तविक चुनौतियों का मुकाबला करने हेतु तैयार करती है।
उद्देश्य
मूल्यपरक शिक्षा का संपूर्ण उद्देश्य विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में निहित है।- जैसे कुछ बहुमूल्य गुण झुकाव, नैतिक विकास, विश्लेषण, मूल्य स्पष्टीकरण, सीख कर करना आदि है। उदारीकरण औद्योगिकरण और वैश्वीकरण के कारण बदलाव की दर और पैमाना तीव्र हो रहा है जिससे नैतिकता एवं मूल्यपरकता में कमी आई है । इसलिए “मूल्यों में विचार, व्यवहार, कार्य और बोध के सभी आयाम शामिल करने के लिए मूल्यपरक शिक्षा अनिवार्य है।“2
 मूल्य के प्रकार
मूल्य सभी के जीवन में सुधार करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जो व्यक्ति अपने जीवन में मूल्यों को समझ लेता है, वह अपने जीवन में बनाए गए विभिन्न विकल्पों की जांच और नियंत्रण कर सकता है। मूल्य भिन्न-भिन्न के प्रकार के होते हैं-“अलग-अलग विचारधाराओं के आधार पर मूल्य में भी कुछ भिन्नता हो सकती है, परंतु सभी शिक्षाशात्रियों, दार्शनिक व समाजशास्त्री इस तथ्य पर एक मत है कि ‘सत्यम’, ‘शिवम’, ‘सुंदरम’ (सत्य, कल्याणकारी व सुंदरता) यही परम मूल्य है।“3 इन मुख्य मूल्यों के अतिरिक्त भी कई ऐसे मूल्य है जो व्यक्ति को ग्रहण करना चाहिए। जैसे-व्यक्तिगत मूल्य, सामाजिक और नैतिक मूल्य सांस्कृतिक मूल्य, आध्यात्मिक मूल्य, राष्ट्रीय मूल्य, पारिवारिक मूल्य, सार्वभौमिक मूल्य इत्यादि।

 मूल्य आधारित शिक्षा में माता-पिता की भूमिका
माता-पिता होने के नाते हमें समझना चालिए कि शिक्षा मात्र सूत्रों और समीकरणों, किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, यह व्यवहारिक जीवन जीने की कला होने के साथ-साथ हमारे आत्मिक विकास से संबंध रखती है। नैतिकता, विनम्रता और शिष्टाचार सभी इस शिक्षा के अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से हैं । यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि माता-पिता के रूप में हमने शिक्षा को मात्र अच्छे अंकों तक सीमित कर दिया है। हम अपने निवेश पर अच्छा रिटर्न प्राप्त करने की दौड़ में यह आकलन करना भूल जाते हैं कि हमारे बच्चों ने नैतिक मूल्यों को सीखा ही नहीं। आज के माता-पिता को इस बात से अवगत होने की आवश्यकता है कि बचपन में ही बच्चों में सकारात्मक मानवीय मूल्यों की नींव पर जानी चाहिए क्योंकि उस समय बच्चों का मन-मस्तिष्क अत्यंत ग्रहणशील होता है। उसके अंदर जो भी विचार भरे जाते हैं, वह आजीवन उनके साथ रहता है।
 मूल्य आधारित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका
मूल्य आधारित शिक्षा में शिक्षक की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक एक ऐसा माध्यम है जो अपने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित, एवं प्रेरित करता है। शिक्षक के व्याख्यान से ज्यादा उसके आचरण का प्रभाव विद्यार्थियों पर ज्यादा पड़ता है। “वह छात्रों के स्तर पर जाकर उनको समझने का प्रयास करता है और अपनी आत्मा का उनमें स्थानांतरण करता है । ऐसे ही शिक्षक वास्तव में छात्रों में उच्च संस्कार डाल सकते हैं। चर्चा, संवाद और व्यावहारिक जान के माध्यम से शिक्षक विद्यार्थियों में मानवीय कार्यों और घटनाओं के बारे में सोचने के लिए प्रतिबद्ध करता है। एक शिक्षक को चालिए कि वह विद्यार्थियों को कला, प्राकृतिक वैभव, मानवीय गुण, नैतिक मूल्यों के प्रति प्रेरित कर, भविष्य की ओर उन्मुख संसाधन बनाए जो अपने समाज एवं राष्ट्र का उत्थान कर सके।
 राष्ट्रीय मूल्यपरक शिक्षा
सभी मूल्यों में राष्ट्रीय मूल्य सर्वोपरि होता है। यह शासन के सिद्धांतों का एकआधारशिला है। राष्ट्रीय मूल्य एक नागरिक की कार्य और व्यवहार का मार्गदर्शन कर राष्ट्र में मूलभूत मान्यताएं स्थापित करता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में पांच सार्वभौमिक मूल्य बताए गए हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक नागरिक अपने मन, वचन और कर्म से इसे अपनाते हैं।जेसे-
“हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को-
 “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
 विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
 प्रतिष्ठा और अवसर की समानता, प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में,
 व्यक्ति की गरिमा और
 राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मा समर्पित करते हैं।“4
• संविधान के अनुच्छेद 51 ए में शिक्षा के मूल्यों को मौलिक कर्तव्य
के रूप में इस प्रकार प्रदर्शित किया गया है-
“भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
 संविधान का पालन करें और उसके आदर्श संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें,
 स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें,
 भारत के प्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें,
 देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें,
 भारत के सभी लोगों में समरसता और सामान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें, जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें, जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है,
 हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें, प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणीमात्र के प्रति दया भाव रखें,
 वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें,
 सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहे,
 व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्र के उत्कर्ष की ओर बढ़ाने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए पर्यटन और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले,
 यदि माता-पिता या संरक्षक है तो वह 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें ।“5
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा का अवसर भारतीय संविधान की मूल आत्मा है। राष्ट्रीय मूल्यों का मुख्य उद्देश्य व्यापक रूप से शिक्षा का प्रसार करना है।

 भारतीय ज्ञान परंपरा में मूल्य आधारित शिक्षा
भारतीय ज्ञान परंपरा में मूल आधारित शिक्षा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन ज्ञान परंपरा का मूल्य लक्ष्य नैतिकता के भाव के साथ ‘सर्वजन हिताय’ की भावना से प्रभावित है। जो विश्व में हमें एक अलग पहचान दिलाती है। “मानवीय मूल्य शाश्वत तथा सर्वकालिक सत्य है । यह मात्र भारत ही नहीं वरन् विश्व के हर कोने में प्रासंगिक है। भारतीय शिक्षा यद्यपि प्राचीन काल से ही ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ व ‘वसुधैव कुटुंबकम’ जैसे शाश्वत एवं सार्वभौमिक मूल्य पर आधारित रही है। इसमें संपूर्ण भूमंडल को एक परिवार मानते हुए समष्टि के लिए कल्याणकारी शुभ आचरण पर जोर दिया जाता रहा है ।“6 जीवन मूल्यों में गुणपरक एवं मूल्य परक शिक्षा द्वारा किसी भी राष्ट्र एवं समाज में नए युग का सूत्रपात किया जा सकता है।
 वैश्विक चुनौतियां और मूल्य परक शिक्ष
पूंजीवाद एवं औद्योगिअकरण ने विश्व में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न की हैं। “विकास के वर्तमान मॉडल ने मनुष्य के लिए ही नहीं बल्कि समूचे प्राणी मात्र के लिए ही अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है । पर्यावरण ह्रास, प्रदूषण के स्तर में वृद्धि, वैश्विक तपन व जलवायु परिवर्तन, बेरोजगारी, आतंकवाद, जनसंख्या वृद्धि जैसी घटनाओं के कारण समूची पृथ्वी का अस्तित्व ही संकट में पड़ता जा रहा है। नैतिक संस्कृति एवं मानवीय मूल्यों में गिरावट तथा पारिवारिक एवं सामुदायिक जीवन के हास्य ने स्थिति को और अधिक खराब बना दिया है।“7
ऐसी परिस्थिति में पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में मूल्य आधारित शिक्षा का महत्व बढ़ गया है। गुणपरक एवं मूल्यपरक शिक्षा के द्वारा संपूर्ण भूमंडल को एक परिवार मानते हुए, कल्याणकारी एवं शुभ आचरण के द्वारा मूल्यों का समावेश करके ही विश्व में शांति, समृद्धि और विकास की कल्पना की जा सकती है।
हर समस्या का समाधान वैश्विक स्तर पर विश्व बंधुत्व के भाव के द्वारा ही किया जा सकता है । सम्पूर्ण विश्व में शांति एवं समृद्धि हेतु गरीबी और अन्य भाव को खत्म कर, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार करने की प्रेरणा से विश्व में समरसता का भाव ला सकते हैं।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि मूल्य पर आधारित शिक्षण के द्वारा अद्यतन शिक्षण प्रक्रियाओं में समरसता का भाव रखते हुए भारतीय मूल्यों, भाषाओं, ज्ञान लोकाचार और परंपराओं के प्रति जागरूक हो सकते हैं। मूल्यों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वव्यापक बनाना यूनेस्को का भी उद्देश्य है। इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा की भारतीय अवधारणा ‘सा विद्या विमुक्ते’ एवं ‘नॉलेज इज पावर’ इन दोनों उद्देश्यों में उचित सामंजस्य स्थापित करके देश की प्रगति मार्ग प्रशस्त किया जाए।
आधार ग्रंथ-
मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021
संदर्भ-
1. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-5
2. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-42
3. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-62
4. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-117
5. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-118
6. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-11
7. मूल्य आधारित शिक्षा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण- 2021, पृष्ठ संख्या-133

डॉ. चुन्नन कुमारी
सहायक प्राध्यापिका
अध्यक्ष (हिन्दी विभाग)
एस.बी. महाविद्यालय, आरा




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