(बाल कविता)
मेरा बाबू
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डेढ़ साल का मेरा बाबू ।
आता नहीं किसी के काबू।।
पीकर दूध गिलसिया फेंके।
चले बाल्टी-लोटा लेके।।
रुकता नहीं किसी के रोके।
नाक-थूक आँचल में पोंछे।।
टोंटी खोल बाल्टी भरता ।
बैठ उसी में छप-छप करता ।।
बिल्ली को रोटी दे आता ।
म्याव-म्याव कर उसे बुलाता।।
चुपके-चुपके आकर पीछे ।
दीदी की चोटी को खींचे ।।
खोल किंवाडा बाहर जाता ।
बीच सड़क पर दौड़ लगाता ।।
तित्ता-तित्ता गाना गाता ।
बन्दर जैसा नाच दिखाता ।।
ज़ोर-ज़ोर से जब चिल्लाता ।
तोड़-फोड़ भी बहुत मचाता ।।
तब मम्मी उसको हड़कातीं ।
और रूठ कर गाल फुलातीं । ।
हाथ पकड़ कर उन्हें मनाता ।
नहीं मना जब उनको पाता ।।
खुद गुमसुम हो, मुँह लटकाता ।
आँसू बलर-बलर टपकाता ।।
मम्मी का फ़िर हृदय पिघलता ।
ममता का सैलाब उमड़ता ।।
उनकी भी आँखें भर आतीं।
गले लगा कर तब दुलरातीं।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'
उज्ज्वल सदन
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