मेरे मन का कंधा नाज़ुक था
चार से अधिक कविताएँ जो लाद दो
पृथ्वी भर की शिकायतें उड़ेल दे
इनकी आंखें,
बिलबिलायी सी रहती थी
सलाहकारों ने सलाह दिया था
शब्दों की आंच, कॉर्निया के लिए घातक है
मैं बार बार पलकें झपका लेता
मेरे हिस्से की ऐनक
किसी पुराने कवि के पास गिरवी थी
एक दिन मन के पैर निकल आए
मोजों में, प्रगतिवाद फड़फड़ाता रहा,
हर गंतव्य में वह मौन ही रहा
मन के चोंच ने
गूंगा होने का बढ़िया स्वांग किया
आजकल ये मन
बेमौसम ठण्ड से बड़ा तंगदस्त है
और मुझे इस बात का गिला है
एक अच्छी कविता लिखने के चक्कर में
आज फिर, कोई कथरी नहीं सिल पाया....
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विक्रम 'एक उद्विग्न'
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The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




