स्वतंत्रता का मतलब केवल दासता की बेड़ियाँ तोड़ना ही नहीं अपितु जो हमारे विचार पाखंड की ज़ंजीरों से जकड़े हुए हैं, उनसे मुक्त होना भी है।
स्वतंत्रता के दशकों पश्चात् भी क्या हमनें कभी विचार किया कि क्या हम सब वैचारिक रूप से भी स्वतंत्र हैं? अगर नहीं तो शायद हम सब स्वतंत्र होकर भी मानसिक ग़ुलामी में जी रहे हैं। यही मानसिक ग़ुलामी इस बदलते युग में पिछड़ जाने का कारण भी है।
भारत माता का आज़ादी के अमृत रस से अभिषेक करने वाले हमारे देश के तमाम उन महापुरूषों, स्वतंत्रता सेनानियों ने सर्वप्रथम अपनी इसी मानसिक ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का कार्य किया, जिसके बल बूते आज हम सब इस स्वतंत्रता के उत्सव को मनाते हैं।
इस बदलते युग की यही माँग है कि हम सब भी महापुरूषों द्वारा निर्मित उसी लीक का अनुसरण करें जिसका ध्येय ही मानसिक ग़ुलामी को जड़ से उखाड़ फेंकना है।
मानसिक ग़ुलामी से मुक्ति का मतलब अपने विकास के मार्ग पर अग्रसर होना है।
~अभिषेक शुक्ल'
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The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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