कुछ बड़ा अगर करना है तो दहलीज छोड़ निकलना होगा ,
जैसे हैं वैसे चलना है तो तेज धूप में मचलना होगा।
यह जलन ही कुछ ऐसी है कि सही ही नहीं जाती,
बिना दहलीज लादे ना घर में रोटी आती है,
आज मेरी विकट स्थिति को देखकर तुम्हें जो कहना है वह कहो,
थोड़ा तो रहम करो कुछ तो मरीयादा में रहो
लेकिन स्थिति बदलेगी समय जब मेरा साथी होगा,
आज जो संगम का दौर चल रहा है कल यह महारथी होगा
अपनों में ही नया नूर नया रतन उपजाना है ,
घर त्याग को गले लगाना है कुछ ज्यादा न कर जाना
कोहिनूर को नहीं भूल , हम नया रतन उपजाएगे ,
एक बार हम थोड़ा मोन हैं वक्त आने पर समझाएंगे
राज बड़ा करना है तो क्षत्रियों के समान लड़ना होगा,
यूं लिखते लिखते बात बनी तो सही ,नहीं दहलीज छोड़ निकलना होगा
----अशोक सुथार