ख़्यालों में ना जाने
कितनी ही बार
मृत्यु से गुज़री हूँ मैं…
बिना शोर किए,
बिना आंसुओं के।
सिर्फ एक आवाज़ —
भीतर से आती हुई…
“माँ… कहाँ हो तुम?”
माँ,
तुम्हारा नाम
मेरे भीतर
किसी संजीवनी की तरह
धीरे-धीरे
मरती हुई साँसों को
फिर से जिंदा करता है।
और फिर…
मैं उठती हूँ।
अपने बिखरे हिस्सों को
अपने ही आँचल में समेटकर,
अपनी ही हथेली से
आँखें पोंछकर,
फिर से चल पड़ती हूँ
एक और दिन जीने…
जैसे जीवन
मेरी माँ की विरासत है
और मैं —
उसकी अंतिम बेटी हूँ।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




