“माँ”मैं परछाई हूँ तेरी
माँ!
मैं परछाई हूँ तेरी
तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ?
बेशक!
आज की दुनिया का नगीना हूँ
पर तेरे ही संस्कारों से सजी हूँ मैं
तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ ? माँ
यक़ीनन!
आज अपने ख़्वाबों को उड़ान देना चाहती हूँ
पर तेरे ख्वाबों की ऊँचाई से ही आज अपने ख़्वाब देख पायी हूँ मैं
तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ?माँ
न जाने!आज क्यों सोच लिया तूने?
तुझसे अलग हूँ मैं
नए ज़माने की ही सही ,
पर तेरे संस्कारों की नींव से ही अपने जीवन के दिए को रोशन करूँगी,माँ
मैं तेरा ही अक्स हूँ माँ
तुझसे अलग होकर तो कहीं खो जाऊँगी,मैं !!
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




