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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

“माँ”मैं परछाई हूँ तेरी

“माँ”मैं परछाई हूँ तेरी
माँ!
मैं परछाई हूँ तेरी
तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ?

बेशक!
आज की दुनिया का नगीना हूँ
पर तेरे ही संस्कारों से सजी हूँ मैं
तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ ? माँ

यक़ीनन!
आज अपने ख़्वाबों को उड़ान देना चाहती हूँ
पर तेरे ख्वाबों की ऊँचाई से ही आज अपने ख़्वाब देख पायी हूँ मैं
तुझसे अलग कैसे हो सकती हूँ?माँ

न जाने!आज क्यों सोच लिया तूने?
तुझसे अलग हूँ मैं
नए ज़माने की ही सही ,
पर तेरे संस्कारों की नींव से ही अपने जीवन के दिए को रोशन करूँगी,माँ
मैं तेरा ही अक्स हूँ माँ
तुझसे अलग होकर तो कहीं खो जाऊँगी,मैं !!
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

राजू वर्मा said

बहुत अच्छा, माता पिता का ऋण केसे कोई चुकाये

वन्दना सूद replied

यह ऋण चाह कर भी नहीं चुकाया जा सकता

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना।👌👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह, बेहद खूबसूरत कविता लिखी हैं आपने,मन को शांत शांत कर गयी आपकी कविता।

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir 🙏🙏😊

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर रचना मैं तेरा हीं अक्स हूंँ माँ बिल्कुल सच्ची बात 🙏🙏

वन्दना सूद replied

वक्त कभी न कभी उन्हीं सोचो की तरफ़ ले ही आता है जिन्हें अक्सर हम नकारा करते हैं

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! दिल छू लेने वाली अभिव्यक्ति है — हर शब्द में माँ की परछाई झलक रही है। माँ-संतान के रिश्ते की गहराई को इतनी खूबसूरती से बयां करना हर किसी के बस की बात नहीं! आपकी इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई, सादर प्रणाम Mam

वन्दना सूद replied

शुक्रिया अशोक जी 🙏🙏हर बच्चा अपने माता पिता का आईना ही होती है

पवन कुमार "क्षितिज" said

भावनापूर्ण रचना 👌👌👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏

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