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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

बिना गिने ही मारे थप्पड़ खुद ही अपने गालों पर

बिना गिने ही मारे थप्पड़ खुद ही अपने गालों पे
बहुत करीबी यारी जो थी छिपकर डसने वालों से
मेरे हैं सब मेरा है सबसे मैं ये कहता था

दुःख के दिन जब आये हों मैं साथ-साथ ही रहता था
थी तलाश मौके की तुम्हें गर जरा जिक्र किया होता
दिल में मेरे बहुत जगह थी जो हुआ कभी भी ना होता
खो चुकी है तेरी अब अमानत तू जा
ले भी ली है मैंने तेरी जमानत तू जा
गिर चुका है तेरे चेहरे का बहुत भाव भी
खत्म हो ही रहा है मेरा कीमती लगाव भी
अब तेरी मुस्कान में वो दम नहीं होगा
फ़ास्ला अब जरा भी कम नहीं होगा
जितनी चाहूंगा दूरी बढ़ा लूंगा मैं
अपनी महफ़िल को फिर से सजा लूंगा मैं
याद गर कर ठीक से तो होगा मालूमात्
तूने ही खुद की लगाई कीमत,फिर औकात
ना किया था प्यार ही ना था ही आहतियात्
बिल्कुल गिरने के बाद तूने लगाई अपनी जात
इतने करम के बाद भी मैं था तेरे ही साथ
सबको किया अनसुना ना सुनी किसी की बात
सब जान लेने पर तुझे ही गलत पाया मेरी जान
फिर हमने खुद को चार तमाचा और लगाया !




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

वन्दना सूद said

अपने भाव बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किए 👌👌👏👏

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