(बाल कविता)
गुस्सा पी जाना अच्छा
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हँसना-मुस्काना अच्छा ।
गुस्सा पी जाना अच्छा। ।
गुस्सा खा जाता तन को
सदा जलाता है मन को
जले रोष की जब ज्वाला
जपो राम की तब माला
गुस्से पर काबू कर लो
निर्वासित इसको कर दो
गुस्से से नुकसान बहुत
करता ये हैरान बहुत
हैरानी में पड़ना क्यों
अपने भीतर रखना क्यों
बेकाबू इस घोड़े पर
ख़ुद काबू पाना अच्छा ।
हँसना-मुस्काना अच्छा ।।
छोटी-मोटी बातों पर
बिगड़े कुछ हालतों पर
दिल को दुखी बनाना ना
अपने को भटकाना ना
मुश्किल घड़ियाँ आती हैं
मन को भी तड़पाती हैं
क्रोध सदा उकसाता है
नफ़रत को फैलाता है
गुस्सा कभी नहीं फलता
इससे काम नहीं बनता
इसीलिए इस चक्कर में
कभी नहीं आना अच्छा ।
हँसना-मुस्काना अच्छा ।।
गुस्सा जब आए तुमको
शांत रखो अंतर्मन को
पानी पी लो लोटा भर
टहलो थोड़ा इधर-उधर
गुस्सा जब बोले हमला
उल्टी गिनती तब गिनना
परेशान हो जब ज्यादा
खुद से कर लो ये वादा
मीठी वाणी बोलूँगा
द्वार प्रेम के खेलूँगा
दुनिया बदल नहीं सकते
स्वयं बदल जाना अच्छा ।
हँसना-मुस्काना अच्छा ।।
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©राम नरेश 'उज्ज्वल'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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