ग़ज़ल
गर तुम्हें ख़ुश नज़र नहीं पाते।
ठीक से हम सँवर नहीं पाते।
राह तकते हैं हम सदा उनकी,
दो घड़ी जो ठहर नहीं पाते।
ज़ब्त कितना कमाल करते हैं,
टूट कर भी बिख़र नहीं पाते।
साथ होती न गर दुआ मां की,
उम्र भर हम सुधर नहीं पाते।
डाॅ○फ़ौज़िया नसीम शाद