मरती हुई कविता के घर,
स्तुति ने जन्म लिया,
स्तुति को सबने हाथों हाथ लिया,
स्तुति की सुन्दरता,
को देवों ने सराहा,
राजाओ ने पुकारा,
स्तुति का प्रबल भाग्य था,
कविता अब बूढी हो चली थी,
उसकी आवाज़ सच के स्वाद सी,
कडुई हो चली थी,
कविता अब किसे पसंद आती,
अलंकार हीन देह सुखी थी,
स्तुति के साथ जमाना चला,
जहां गई काम बना,
स्तुति सबकी प्यारी
हो गई,
कविता सबको भूल गई