एक पंछी
एक पंछी आया दूर जगह से मेरे देश
न नाम न ही कोई उसकी पहचान
न चलना जाने न ही जाने उड़ना
परेशानियों में उलझी उसकी किस्मत
खाने की तलाश में दर दर वो भटके
आ पहुँचा एक दिन मेरी चोखट
देख कर उसको मन भर आया
किस्मत का है खेल न्यारा
जज़्बा इसका ऊँचाइयों को छूने वाला
क्यों भटके ये मारा मारा
कुछ दिन-महीने बीते फिर आया नया साल
आया पैग़ाम अपने देश से
निकल पड़ा वापिस नई आशा लिए
उमंगों से भरा ,नाम अपनी नई पहचान बनाने
पंछी हो गया अब उड़ने को तैयार ॥
वन्दना सूद