फ़िर वो लौटा ही नहीं, कौन था जो इस बार गया..
दिल में दर्द बचा, तो मालूम हुआ कि इतिबार गया..।
बहुत वक्त तक ना संभाला जाएगा, अब खुद को..
तबियत भी नासाज़ है कि, दिल का मुख़्तार गया..।
ये रास्ते अज़नबी हैं, और मंज़िले भी है ओझल..
अब कोई दिखता ही नहीं, कहां अपना कोई अलमदार गया..।
हुस्न के बाज़ार में जो वफ़ा का सामाँ तलाशने गया..
मज़बूर होकर खाली हाथ, फिर वो खरीदार गया..।
अब मुस्कुराने को भी, हज़ार बहानों की दरकार है..
मेरे भीतर जो छुपा था, कहां बच्चे का वो किरदार गया..।
पवन कुमार "क्षितिज"