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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

फार्च्यूनर

Apr 17, 2025 | विषय चर्चा | Ritesh Goel  |  👁 117,568

ज़मीन बेच क बाबु की,नई फार्च्यूनर कढ़वाई है,

छोड़ क अपनी जमींदारी,या बिदेशी पूंछ बँधवाई है,

माँ के हाथ की नुनी रोटी इब भावती कोनी,

जबत शहरी मैडम के गेला वो पनीर चौमिन खाई है,

हाँ मैं उसे देसी कौम का छोरा सुं,

जिसने देश की खातिर खून की नदियाँ बहाई है,

लेकिन अब मैं बदल रहा हूँ,

आज की पीढ़ी का मैं वो युवा नेता हूँ,

जिसने अंग्रेजी के पाछे सीधी लाइन लाई है,

भाड़ म गई दुनियादारी,भाड़ म गई मेरी जमींदारी,

मैने तो चहिये बस गाड़ी,बंगला और सुथरी नारी,

सपना स मेरा कि दारू की नदियाँ बहाऊँ,सारे यडी संग बुलाऊँ,

बिदेशी महिलाओं के संग गाऊं म भी आज ब्लू है पानी -पानी,

ऐसा ही रहा तो बेटे कब तक देसी रह पावेगा,

बिदेशी कल्चर की बोतल म डूब क रह जावेगा,

फिर हम भी केहवेनगे सर त ऊपर चला गया था पानी -पानी,

इसलिए खत्म हो गई इसकी कहानी-कहानी,

याद कर पुरखा की सिख,

सबसे पहले देश है, फिर किसी से प्रीत,

मजनू बन क ङोलना, दारू के ढ़क्कन खोलना,

सिगरेट स छल्ले बनाना, पान खा क थुकना,

किसी काम ना आवेगा,

इस अंधे अनुकरण मे, तु अपनी सम्पति गवावेगा,

खैर मैंने के लेना -देना, ये बात तुम्हारी है,

जमीन भी तुम्हारी,सरकार भी तुम्हारी हैं,

अपने बड़ा की मानेगा तो सुथरा भविष्य पावेगा,

वरना ओर कौमों की भाँति कुछ गज म सिमट रह जावेगा।

जय हिन्द।

जय भारत।

लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar kya bhaav hain... Abhinandan hai Goel ji..

Ritesh Goel replied

tahe dil se shukriya ashok kumar ji

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