समेटे हूँ जहान को खुद मे ही मैं,
हर शब्द मुझमें समाया हैं,
कोई भी भाषा छूटी नहीं है,
हे मानव ! सब तूने मुझसे ही पाया है,
मैं ही हूँ गीता, मैं ही गुरु वाणी,
मैं ही हूँ बाइबल, मैं ही कुरान हूँ,
मैं भूत, मैं भविष्य, मैं ही वर्तमान हूँ,
मैं ही हर धार्मिक ग्रन्थ का सार हूँ,
हर विभिन्नता को मैंने अपनाया है,
भाषाएँ बदली, लोग बदले,
हर सभ्यता की संस्कृति को मैंने ही बचाया है,
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक,
ज्ञान की बेला को मैंने ही पहुँचाया है,
मुझे जितना अपनाओगे,
उतना विकसित हो जाओगे,
मैं ज्ञान का भण्डार हूँ,
जी हाँ ! मैं क़िताब हूँ।
लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'