नमस्कार साथियों,
आज हम एक ऐसा विषय लेकर उपस्थित हैं, जो न केवल देश के वर्तमान की पीड़ा है, बल्कि भविष्य की दिशा भी तय करेगा।
वर्ष 2025 — जिसे हमने उम्मीदों और विकास के साल की तरह देखा था,
पर यह साल घटनाओं का साल नहीं, घावों का साल बन गया।
और सबसे बड़ा सवाल ये है —
क्या ये सिर्फ “दुर्घटनाएँ” थीं या शासन व्यवस्था की गहरी असफलताएँ?
मुख्य विषय:
“जब देश थमा, लोग रोए, और सरकार चुप रही — 2025 की 10 त्रासदियाँ और 10 अनुत्तरित प्रश्न”
घटनाएँ और उनसे जुड़े प्रश्न :
1. Air India Dreamliner क्रैश (12 जून, अहमदाबाद)
• टेकऑफ़ के कुछ ही मिनटों में क्रैश।
• लैंडिंग गियर ऊपर नहीं गया, थ्रस्ट कम हुआ, फ्लैप गलत एंगल पर।
• जनता ने वीडियो में देखा — “Thrust not achieved, falling”
• 279 लोग मरे: 241 जहाज़ में, 38+ ज़मीन पर
प्रश्न:
ब्लैक बॉक्स की रिपोर्ट कब आएगी?
क्या तकनीकी जाँच पारदर्शी होगी या फिर “मानवीय भूल” कहकर बात दबा दी जाएगी?
2. केदारनाथ हेलीकॉप्टर हादसा (14 जून)
• श्रद्धालु तीर्थयात्रा पर निकले थे,
लेकिन मौसम की अनदेखी और उड़ानों ने उन्हें अग्नि में सौंप दिया।
• 7 लोग मरे, जिसमें एक बच्चा भी शामिल
प्रश्न:
क्या चारधाम यात्रा में हेलीकॉप्टर सुरक्षा गाइडलाइनों का पालन हो रहा है?
हर साल क्यों दोहराई जाती है वही गलती?
3. पहल्गाम आतंकी हमला (22 अप्रैल)
• 26–28 मासूम मारे गए (24–26 भारतीय, 2 विदेशी, 1 स्थानीय) ।
• आतंकी संगठन TRF / LeT; इंटेलिजेंस फेलियर?
प्रश्न:
खुफ़िया तंत्र कहाँ था?
घुसपैठ और आतंकी मूवमेंट की जानकारी समय रहते क्यों नहीं मिली?
4. पुणे पुल ढहना (15 जून)
• इंद्रायणी नदी पर बना पुल भारी बारिश में ढह गया,
बच्चों और महिलाओं की चीखें पानी में डूब गईं।
प्रश्न:
क्या इस पुल की समय पर जांच हुई थी?
बारिश दोषी है या हमारी लापरवाही?
5. बेंगलुरु स्टेडियम भगदड़ (4 जून)
11 मौतें, 50+ घायल
टिकट वितरण में अव्यवस्था,
सपनों की भीड़ मौत की भीड़ बन गई।
प्रश्न:
भीड़ नियंत्रण के SOP सिर्फ कागज़ों पर क्यों हैं?
पुलिस-प्रशासन मैच से पहले कहाँ था?
6. दिल्ली स्टेशन भगदड़ (15 फरवरी)
1. ट्रेन छूटने का डर, अनियमित प्लेटफॉर्म घोषणाएं।
2. जिन हाथों में सूटकेस होना था, उनमें बच्चों की लाशें थीं।
3. 18 लोग मरे, 15 घायल ।
4. भीड़-बहाव अंदाज़; रेलवे ने सुधार का वादा किया।
प्रश्न:
क्या रेलवे सुरक्षा अब भी “बोर्डिंग” तक ही सीमित है?
7. उत्तराखंड हिमस्खलन (28 फरवरी)
1.BRO कैंप पर 8 जवान शहीद ।
2.मौसम चेतावनियाँ थीं—पर सुरक्षा नहीं।
प्रश्न:
क्या ITBP और BRO जैसी संस्थाओं को पर्याप्त संसाधन मिल रहे हैं?
8. असम और बिहार में बाढ़ त्रासदी
• नदी बाँध टूटे, गाँव बह गए।
• लोग जान बचाने छतों पर बैठे रहे — और NDRF 3 दिन बाद पहुँची।
प्रश्न:
क्या बाढ़ सिर्फ प्राकृतिक आपदा है या पूर्व नियोजन की विफलता?
9. प्रयागराज मेला भगदड़
• आस्था, व्यवस्था के नीचे कुचली गई।
• CCTV थे, पुलिस नहीं।
भीड़ नियंत्रण और आपातकालीन व्यवस्था बार-बार क्यों विफल हो रही है?
आयोजकों/प्रशासन के ख़िलाफ़ कोई सज़ा क्यों नहीं?
क्या हमारी धार्मिक यात्राएं अब भी “भीड़” मानकर नियंत्रित की जाती हैं?
10. घटनाओं के बाद मुआवज़ा और इलाज में देरी
• दुर्घटना के बाद राहत तो मिलती है, पर कब?
• परिजनों को राहत, मुआवज़ा, और दवा की लाइन में लगना पड़ता है।
प्रश्न:
क्या आपदाओं के बाद राहत “स्वाभाविक प्रक्रिया” है या “राजनीतिक घोषणा”?
पुणे पुल ढहना (15 जून)
2–4 मौतें, 32 घायल ।
पुल जर्जर था—क्या इसकी नियमित जांच क्यों नहीं हुई?
इंफ्रास्ट्रक्चर और निरंतर गिरावट—इसका समाधान कब?
पुल की मरम्मत समय पर क्यों नहीं हुई?
शहरी निगरानी और लाइफ-स्पैन रिपोर्टिंग प्रणाली क्यों नहीं लागू?
ये घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि दुर्घटनाएँ सिर्फ प्रकृति की देन नहीं होतीं,
वे अक्सर हमारी तैयारियों की कमी और लापरवाह नीतियों की उपज होती हैं।
1. हमें “मौन संवेदना” नहीं, जवाबदेही चाहिए।
2. हमें “जाँच के वादे” नहीं, नीति में बदलाव चाहिए।
3. हमें “खेद” नहीं, सुरक्षित भविष्य चाहिए।
अब समय है — एकजुट होने का, पूछने का, और मांगने का।
जवाब नहीं मिला तो अगली पीढ़ी फिर यही सवाल पूछेगी —
“क्या हमने सिर्फ सहा? या कभी जवाब माँगा?”
2025 की सबसे बड़ी घटनाएँ और प्रश्नचिन्ह” विषय-चर्चा का अगला भाग, जिसमें हम NEET पेपर लीक और अन्य प्रमुख शैक्षिक और प्रशासनिक घोटालों को शामिल कर रहे हैं। यह भाग विशेष रूप से उन छात्रों, माता-पिता और शिक्षकों की आवाज़ है, जिनकी मेहनत, सपनों और भविष्य के साथ खिलवाड़ हुआ — और अब भी सरकार मौन है।
शिक्षा या साज़िश? – जब परीक्षा, परिणाम और भविष्य बिक गया
NEET 2025 पेपर लीक – एक राष्ट्रीय अपमान
तारीख: परीक्षा – 5 मई 2025, परिणाम – 4 जून
• घोटाला उजागर: 6 जून से वायरल हुआ वीडियो, जिसमें छात्र ₹30 लाख में पेपर मिलने की बात कर रहे थे।
• मुद्दे:
एक ही परीक्षा केंद्र पर 67 छात्रों को एक जैसा 720/720?
दो छात्रों को समान रोल नंबर?
कोर्ट में खुद NTA ने स्वीकारा कि “कुछ छात्रों को समय अधिक मिला”
छात्रों की आत्महत्याएँ — 3 रिपोर्टेड केस (अब तक)
फिर भी सरकार और NTA ने परिणाम रद्द नहीं किए?
UGC NET परीक्षा रद्द (18 जून):
. एक ही दिन में परीक्षा रद्द करना — क्या यह लाखों छात्रों के साथ धोखा नहीं?
परीक्षा एजेंसियों की जवाबदेही तय क्यों नहीं होती?
CUET, SSC, RAILWAY जैसे अन्य परीक्षाओं की गड़बड़ियाँ:
परीक्षा केंद्रों पर बार-बार तकनीकी खराबी क्यों?
क्या सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है?
सभी घटनाओं पर सरकार की चुप्पी:
. हर बार “जांच शुरू” कहा जाता है, पर निष्कर्ष कब आएंगे?
. क्या सरकार हर घटना को केवल मीडिया मैनेजमेंट से संभालने की सोच रही है?
. क्या किसी एक भी मामले में पारदर्शी प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई?
. क्या अब “लोकतंत्र” केवल चुनाव जीतने तक सीमित रह गया है?
जनता से एक विनम्र परंतु तीखा अनुरोध:
कौन तलाक ले रहा है,
किसने बंगला खरीदा,
किसने महंगी गाड़ी चला ली —
इन्हीं बातों में डूबे रहे हम…
जागिए —
नहीं तो अगला नंबर किसका होगा, कोई नहीं जानता।
हमारी चुप्पी, हमारी बारी को बुला रही है।
ये हादसे दूर नहीं, दरवाज़े तक आ चुके हैं।
Netflix नहीं, सच देखो।
Instagram नहीं, इंसाफ़ माँगो।”**
हर दिन
हम सेलिब्रिटीज़ के कपड़े, तलाक, गाड़ियाँ,
और रील्स पर आँखें गड़ाए रहते हैं…
अब समय है —
स्क्रीन कम, सच्चाई ज़्यादा।
वायरल कम, विचार ज़्यादा।
ट्रेंड कम, truth ज़्यादा
थोड़ा Netflix कम करो,
थोड़ा संविधान पढ़ो।
थोड़ा सेलिब्रिटी भूलो,
थोड़ा नागरिक बनो।
देश को आपकी जागरूकता चाहिए, आपकी चीयर नहीं।
ऑनलाइन से बाहर आइए, देश अब रील में नहीं, रगों में जल रहा है।”
हम स्क्रीन पर उंगलियाँ चला रहे हैं,
और वहाँ ज़िंदगी सरक रही है।
अब ऑनलाइन चीखने से कुछ नहीं होगा।
बाहर आइए — सड़कों पर, सच में, संवाद में।
अपने मन का “Status” नहीं,
देश का “Stability” देखिए।
रील से निकलो,
रियल बनो।
स्क्रीन छोड़ो,
ज़मीन पकड़ो।
अब भी अगर नहीं जागे, तो अगला नाम आपका हो सकता है।
12 जून को एयर इंडिया ड्रीमलाइनर गिरा —
गियर खुला रहा, फ्लैप गड़बड़ थे,
थ्रस्ट फेल हुआ — लेकिन सरकार चुप है।
9 जून को पहलगाम में श्रद्धालुओं की बस पर हमला हुआ,
गोलीबारी में 9 निर्दोष लोग मारे गए —
लेकिन सरकार चुप है।
NEET का पेपर लीक हुआ,
टॉपर का रोल नंबर वायरल हुआ,
भ्रष्टाचार और पैसे का खेल उजागर हुआ —
लेकिन सरकार चुप है।
रेल हादसे, भूख से मौतें,
कभी पुलिस गोली मारती है,
कभी कानून खामोश रहता है —
और हम?… हम बस स्क्रॉल करते रहते हैं।
जब आग घर तक आ पहुँचे,
तब जांच जारी है नहीं,
आवाज़ उठानी पड़ती है।
अब बहुत हुआ!
• ऑनलाइन से बाहर निकलो।
• सरकार से सवाल करो।
• अपने बच्चों के लिए, देश के लिए, सच्चाई के लिए लड़ो।
• क्योंकि जो चुप हैं — वो भी इस विनाश में हिस्सेदार हैं।
2025 हमें हिला रहा है —
अगर अब भी न जागे, तो 2026 में मातम मनाने को कुछ भी नहीं बचेगा।