Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

भारतीय नौकरशाहों और नेताओं की सुविधाएं बनाम आम आदमी की घटती कमाई

भारतीय नौकरशाहों और नेताओं की सुविधाएं बनाम आम आदमी की घटती कमाई

भारत, एक लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद, सामाजिक और आर्थिक असमानता का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। एक ओर जहां नौकरशाहों और नेताओं की सुविधाओं और विशेषाधिकारों में निरंतर वृद्धि हो रही है, वहीं आम आदमी और मजदूर वर्ग की आय घट रही है, और उनके बच्चों की शिक्षा तक पहुंच सीमित होती जा रही है। यह स्थिति पुराने महाराजाओं और उनकी प्रजा के बीच की खाई की याद दिलाती है। इस लेख में इस असमानता को समझने की कोशिश करेंगे और इसके सामाजिक प्रभावों पर प्रकाश डालेंगे।
भारतीय नौकरशाहों और नेताओं को मिलने वाली सुविधाएं किसी आधुनिक राजा से कम नहीं हैं। मंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों को सरकारी आवास, वाहन, चिकित्सा सुविधाएं, यात्रा भत्ते, और अन्य विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए, एक सांसद को न केवल मासिक वेतन और भत्ते मिलते हैं, बल्कि मुफ्त आवास, बिजली, पानी, और यात्रा सुविधाएं भी दी जाती हैं। हाल के वर्षों में, इन सुविधाओं में वृद्धि देखी गई है। समय समय पर सांसदों के वेतन और भत्तों में संशोधन करके , उनकी सुविधाओं को और मजबूत किया टाटा रहा है, जिसमें मुफ्त हवाई यात्रा और रेल पास शामिल हैं। नौकरशाहों की स्थिति भी कम भव्य नहीं है। वरिष्ठ IAS और IPS अधिकारियों को सरकारी बंगले, ड्राइवर, सुरक्षा, और अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इन सुविधाओं का खर्च जनता के करों से वहन किया जाता है, जो कई बार आम आदमी के लिए बोझ बन जाता है। इसके अलावा, इन विशेषाधिकारों की लागत में निरंतर वृद्धि हो रही है, जबकि इसकी आवश्यकता पर सवाल उठाए जाते हैं।
दूसरी ओर, भारत का आम आदमी और मजदूर वर्ग आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। महंगाई की दर में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में कमी, और अनिश्चित आर्थिक नीतियों ने मजदूरों और निम्न-मध्यम वर्ग की आय को बुरी तरह प्रभावित किया है। भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की औसत दैनिक आय मात्र 300-400 रुपये है, जबकि महंगाई बहुत ज्यादा है। यह स्थिति मजदूरों को गरीबी रेखा के और करीब धकेल रही है। कोविड-19 महामारी के बाद असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति और खराब हुई। लाखों प्रवासी मजदूरों ने अपनी नौकरियां खो दीं और उनकी बचत खत्म हो गई। इसके विपरीत, नौकरशाहों और नेताओं की सुविधाओं में कोई कमी नहीं आई। यह असमानता न केवल आर्थिक है, बल्कि सामाजिक और नैतिक स्तर पर भी प्रश्न उठाती है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी यह असमानता स्पष्ट दिखाई देती है। नौकरशाहों और नेताओं के बच्चे देश और विदेश के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। उनकी शिक्षा का खर्च कई बार सरकारी कोष या विशेष कोटे के माध्यम से पूरा होता है। उदाहरण के लिए, कई नौकरशाहों के बच्चे विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति या सरकारी सहायता प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत, आम आदमी और मजदूर वर्ग के बच्चे सरकारी स्कूलों की खराब स्थिति और निजी स्कूलों की ऊंची फीस के बीच फंस जाते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बावजूद, सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षकों, पुस्तकों, और कक्षाओं की कमी बनी हुई है। यह स्थिति उच्च शिक्षा तक पहुंच को और कठिन बनाती है, जिससे सामाजिक गतिशीलता रुक जाती है।

नौकरशाहों और नेताओं की जीवनशैली को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि वे आधुनिक युग के "महाराजा" बन गए हैं। पुराने समय में, महाराजा अपनी प्रजा से कर वसूलते थे और उसका उपयोग अपनी विलासिता और भव्यता के लिए करते थे। आज के नौकरशाह और नेता भी जनता के करों से प्राप्त धन का उपयोग अपनी सुविधाओं के लिए करते हैं, जबकि जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं। पुराने महाराजाओं के पास असीमित शक्ति और संसाधन थे, लेकिन उनकी प्रजा को अक्सर गरीबी और अभाव में जीवन बिताना पड़ता था। आज भी यह स्थिति बहुत अलग नहीं है। नौकरशाहों और नेताओं की सुविधाएं और विशेषाधिकार बढ़ते जा रहे हैं, जबकि आम आदमी की आय और जीवन स्तर में सुधार की गति धीमी है। यह असमानता लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है, जो समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित है।
भारत में नौकरशाहों और नेताओं की बढ़ती सुविधाओं और आम आदमी की घटती कमाई और शिक्षा के अवसरों के बीच की खाई एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या है। यह असमानता न केवल आर्थिक विकास को बाधित करती है, बल्कि सामाजिक एकता को भी कमजोर करती है। पुराने महाराजाओं और उनकी प्रजा की तरह, आज का शासक वर्ग और आम जनता के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है। इस स्थिति को बदलने के लिए नीतिगत सुधारों, पारदर्शिता, और जवाबदेही की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह नौकरशाहों और नेताओं की सुविधाओं को तर्कसंगत बनाए और आम आदमी की आय और शिक्षा पर अधिक ध्यान दे, ताकि एक समावेशी और समान समाज का निर्माण हो सके।




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

वन्दना सूद said

sir आपकी बात को पूरी तरह से नाकार नहीं रहे हैं पर पूर्ण रूप से सत्य भी नहीं कहा जा सकता हमारे नज़रिए से 🙏🙏हमारे घरों में काम करने वाले कई लोगों के घर में भी आज ac, cooler हैं washing machine, स्मार्ट फ़ोन हैं जो ये सब afford कर सकते हैं उनके बच्चे भी अच्छी शिक्षा ले सकते हैं पर उनमें से कुछ पढ़ना नहीं चाहते और कुछ थोड़ा पढ़ कर बड़ी नौकरी चाहते हैं । और बहुत ऐसे भी हैं जितना कमाते हैं उससे ज़्यादा ग़लत चीज़ों में उड़ा देते हैं जो ज़िम्मेदार है वो सीमित कमाई में भी निखरा हुआ है इसलिए पूरा दोष सरकार को देना ठीक नहीं है । कम कमाई के बाद भी तीन , चार बच्चे करने के लिए सरकार नहीं कहती । बहुत कुछ है जो स्थिति सुधारने के लिए ख़ुद भी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए । बाक़ी आप ख़ुद समझदार हैं और दुनिया को देखने का हर किसी का अपना नज़रिया है ।कुछ बुरा लगा हो तो 🙏🙏

Devender Kumar replied

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया धन्यवाद्, जी

खेल जगत - न्यूज़ - सामाजिक एवं राजनितिक श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


LIKHANTU DOT COM © 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन