लोग तो बहुत मिले मगर,
तेरे मिजाज की दुनिया न मिली।
दूर रह कर के देख लिया,
दूर रह कर के तसल्ली न मिली।
दिल मे चुभन सी होती,
कायनात मे इसकी दवा न मिली।
मेरा स्वभाव तुमको पता,
उसी स्वभाव की हवा न मिली।
अब थकान ओढ़ी जिस्म ने,
ऐसे थकान मे खुशी न मिली।
पलक दबा रहा नींद आती नही,
आराम मे 'उपदेश' गर्मी न मिली।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद