क्रोध एक भयानक प्रबल शत्रु
जहाँ जरा सी प्रतिकूलता सहन करना सम्भव नहीं ,
वहाँ प्रभु प्रेम में सब कुछ फूँक कर मस्त होने की आशा कैसे की जा सकती है
क्रोध एक ऐसी अग्नि है जो सारे शरीर में ज्वाला फूँक देती है
और जिसका तन-मन इसमें धधक उठता है ,उससे भजन कहाँ सम्भव है
जब तक क्रोध है,तब तक परमार्थ अर्थात् सहजता,सभ्यता और सरलता पाना कठिन है।
अतः जगत और भगवत्प्राप्ति दोनों के लिए ही क्रोध का नाश परमावश्यक है
-वन्दना सूद