सखा
सुनो ना
बारिश बहुत तेज़ हो रही है।
हम तो बैठे भी भिन्न डालियों पर है।
भूख भी लगी है।
तुम्हारी पोटली में चावल तो है ना!?
जो आश्रम से गुरुमाता ने दिए थे?
हां!
पर वो तो मैंने खा लिए।
भूख लगी थी बहुत तेज़।
अच्छा। चलो कोई बात नहीं।
वर्षों बाद जब सुदामा जी से श्री कृष्णा मिले तो अपने परम् सखा के हाल पर रो दिए
और धो दिए
अपने अश्रुओं से
श्रीधाम जी के पैर।
पूछते खैर
तुम इस हाल में कैसे
जैसे
भूल ही गए अपने सखा कृष्ण को।
क्यों?
कभी तो याद किया होता
अपना बाल सखा कान्हा
आना ना होता
तो मैं ही आ जाता
हटाते कांटा पैरों से
और नौ-नौ धार श्री कृष्णा रोए ही जा रहे थे।
श्रीधाम जी ने अपने परम् सखा श्री कृष्णा जी को श्राप से बचाने हेतू श्रापित चावल अकेले स्वयं ग्रहण कर लिए थे। फल स्वरूप दयनीय स्थिति में अपनी गृहस्थी गुज़ारने को विवश थे श्री धाम जी।
ऐसे सखा दुर्लभ ही मिलते है इस कलियुग में।
परम् पूज्य सखा युग्म श्री धामा जी व श्री कृष्णा जी की मित्रता की जय! 🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌
_______मनीषा सिंह