पसीने से तरबतर, मैं अपने ही घर गया,
दहलीज पर उतार थकान मैं भीतर गया।
बेटी बोली थी बाबा लाना एक खिलौना,
याद करके उसे आँख आँसू से भर गया।
खाली हाथ देख बेटी जब मुस्कराने लगी,
उसे देख कर मैं अंदर ही अंदर मर गया।
ज़रूरतें खींच कर ले गई घर से दूर मुझे,
कौन खुशी-खुशी गाँव छोड़ के शहर गया।
🖋️सुभाष कुमार यादव