कापीराइट
यूं ही पछताते हैं लोग
जब भी देखते हैं खार को संभल जाते हैं लोग
ये, छुपे कांटे गुलाब के, जख्म दे जाते हैं रोज
उसी ने जख्म खाया, जिस ने छुआ गुलाब को
एक अन्जाने से दर्द से ये तङप जाते हैं लोग
एक धोखा है इस जमाने में, खुशबू गुलाब की
कांटा, लगते ही उंगली में, सहम जाते हैं लोग
खींचे चले आते हैं सारे, महकती हुई खुशबू में
इसी के मोह में फंसकर, चले आते हैं ये लोग
गर, न होते यह कांटे, इन हंसी गुलाबों के संग
इनकी चुभन से न होते यूं परेशां ऐसे ये लोग
ये इश्क भी है एक धोखा, इन कांटों की तरह
इश्क करके सभी यादव, यूं ही पछताते हैं लोग
- लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
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