जिस्म को ढीला करके पूरा आजाद करो।
अपनी महबूबा को और ना नाशाद करो।।
आज की रात जाने ना दूँगी घर से बाहर।
सहयोग चाहती तुमसे रहने का वाडा करो।।
होंठो से जाम हथेलियाँ कानो पर रखकर।
भूली नही अब तक तुम भी जरा याद करो।।
तन्हा रह रह कर थक चुकी अब और नही।
मेरी गोद में सिर रखो और ना नाशाद करो।।
याद रह जाएगी 'उपदेश' सुकून मिलने पर।
बड़ी मुश्किल में जान वक्त ना बर्बाद करो।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद