नजर कब लड़ी खबर देरी से पडी थी।
ऐसे वक्त में सूरज को धूप की पडी थी।।
थोडी देर रुका पसीना-पसीना हो गया।
रुमाल से चेहरा पौंछा वो आगे खडी थी।।
शंकर की मर्जी के आगे किस की चली।
जिस्म काँप गया इम्तिहान की घडी थी।।
बेमौसम की घटाओ का घुमडकर आना।
उसको 'उपदेश' नाम पूछने की पडी थी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद