करमा घूमे गोल-गोल
जैसे झूमे झूला झोल।
समझ में नहीं आते बोल
कितना भी चाहे हो मोल।
जैसे खाएं परांठा रोल
भूले खाना रोटी गोल।
समय का पहिया मांगे टोल
घिस जाता जूती का सोल।
टेढ़े-मेढे रस्ते खोल
फिर गिर जाते अंदर होल।
रोते पुकारे मां-बाबा अनमोल
जानें तब शब्दों का मोल।
_____मनीषा सिंह