मेरे विचार और मेरे संकल्प, जो मिले हुए हैं..
तभी तो फूल मेहनत के, वक्त पर खिले हुए हैं..।
दुनिया को दुनियादारी की, नज़र से ही देखा..
फिर क्यूं ज़माने को, हमसे इतने गिले हुए हैं..।
इस शहर में अब कोई, ऐसी जगह भी ना रही..
जहां सब लोगों के दिल से, दिल मिले हुए हैं..।
यहां ज़माने में दो हिस्सों में, बंटे हुए लोग देखे हमने..
कुछ के पांव कांटों से, कुछ के फूलों से छिले हुए हैं..।
यहां शायरों पर इल्जामों का दौर अलहदा सा है..
पीठ पीछे सब कहते, ये जनाब तो हिले हुए हैं..।