शिक्षक दिवस पर अपनी इस विनम्र रचना “डिजिटल युग के गुरु” मैं उन सभी आचार्यों को समर्पित करता हूँ, जिन्होंने परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु बनकर हमें शिक्षा का अमूल्य प्रकाश दिया।
यह कविता गाँव की चौपाल और मिट्टी की पाठशाला से लेकर आज की डिजिटल कक्षाओं और ऑनलाइन गुरुकुल तक की यात्रा को शब्द देती है। इसमें उस गुरु की छवि है जो समय के साथ बदलता है, परंतु अपने मूल स्वरूप—ज्ञान और संस्कार देने वाले दीपक—में कभी नहीं बदलता।
इस विशेष दिन पर मैं उन सभी शिक्षकों को नमन करता हूँ, जिन्होंने अज्ञान के अंधकार को मिटाकर समाज को सदा नई राह दिखाई। शिक्षक ही वह पथप्रदर्शक हैं, जिनकी वाणी और मार्गदर्शन हर युग में अमिट रहते हैं।
आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 🌸🙏
"डिजिटल युग के गुरु"
गाँव की चौपालों में, पीपल की छाँव तले,
मास्टर जी ज्ञान की बूँदें, बच्चों पर बरसाते।
टाट-पट्टी पर बैठकर, शब्दों की नदियाँ बहतीं,
गुरु के चरणों में ही, शिक्षा की दुनिया खिलती।
काली तख्ती, खड़िया से, अंक और अक्षर जगते,
मास्टर जी की डाँट में भी, स्नेह और संस्कार बसते।
गुरुकुल की परंपरा, गाँव-गली में खिलती,
नैतिकता और धर्म से, जीवन की राहें मिलती।
धीरे-धीरे शहर बढ़े, स्कूलों की रौनक आई,
चॉक और डस्टर संग, नयी किताबें घर-घर छाई।
गुरु की छवि बनी रही, अनुशासन की डोर से,
पढ़ाई के संग जुड़ गई, विज्ञान की भोर से।
कंप्यूटर ने दस्तक दी, शिक्षा का रूप बदला,
ब्लैकबोर्ड की जगह अब, स्क्रीन ने स्थान संभाला।
कक्षा में बैठा छात्र अब, माउस से उत्तर देता हैं,
गुरु की वाणी पहुँच गई, तकनीक के हर फलक पर।
डिजिटल बोर्ड चमक उठा, प्रोजेक्टर ने रंग दिखाए,
एनिमेशन के दृश्य से, कठिन विषय भी समझ में आए।
गाँव के मास्टर जी की, वही परंपरा आगे बढ़ी,
ज्ञान का दीप जलता रहे, हर युग में राह दिखाए।
ऑनलाइन क्लास ने रच दी, शिक्षा की नई कहानी,
घर बैठे-बैठे बच्चे, पा रहे गुरु ज्ञान की निशानी।
मोबाइल-लैपटॉप संग, अब क्लासरूम सिमट गया,
गुरु की मेहनत इंटरनेट पर, हर घर तक बिखर गया।
जूम, मीट और यूट्यूब से, अब जुड़ते हैं विद्वान,
हजारों मील दूर रहकर भी, पहुँचता उनका ज्ञान।
मास्टर जी की वह लकड़ी, अब कीबोर्ड ने थामी,
कुशलता और तकनीक ने, शिक्षा को नयी रामी।
गाँव के बच्चे भी अब, स्मार्टफोन से पढ़ते हैं,
ऑनलाइन टेस्ट देकर, दुनिया के संग बढ़ते हैं।
जहाँ कभी दीये की रोशनी में, पाठ रटा जाता था,
आज वही स्क्रीन पर, विज्ञान पढ़ाया जाता है।
परंपरा वही है, बस रूप बदलता जाता है,
गुरु सदा दीपक बनकर, अज्ञान मिटाता जाता है।
चाहे हो मिट्टी की चौपाल, या डिजिटल का संसार,
गुरु की महिमा अटल रही, हर युग में अपार।
तो प्रणाम है उन गुरुओं को, जो बदलाव से न घबराए,
डिजिटल युग के संग-संग, शिक्षा की राहें अपनाए।
गाँव के मास्टर जी से लेकर, स्क्रीन के वर्चुअल गुरु तक,
भारत की आत्मा गाती है – "गुरु ही सदा पथप्रदर्शक।"
लेखक: अभिषेक मिश्रा "बलिया"