वो दौर गया ,
हम चुपके-चुपके कहते थे ,
अपनी ख्वाहिश अंक समा ,
बस सहमे सहमे रहते थे ,
दिल की अनबन या कोई चुभन ,
शब्द घाव या प्रीत सघन ,
ख्वाहिश अपनी या मीठे सपन ,
हम दिल में सजोये रहते थे l
वो दौर गया ,,
एक- एक रिश्ता वो कैसे भी ,
हो जन्मजात या दिल से सृजित ,
हो याराना या महबूबा ,
हो बचपन की संगोष्ठी या ,
फिर हो वो सम्मान महति l
हम उनको सोचा करते थे ,
हम उनका सोचा करते थे ,
दिल से निभाया करते थे l
वो दौर गया ,
स्कूल में पढकर फिर घर आकर ,
अंकगणित और बारहखड़ी में ,
थोड़ी प्रश्नावली विज्ञानो मे ,
थोड़े थोड़े गीत गजल में ,
दादी के मीठे भजनो में ,
मम्मी के लोरी गानो में ,
छिपकर जब सो जाते थे l
वो दौर गया ,
समाकलन मे उल्झे उल्झे ,
बीजगणित के जटिल प्रश्न में ,
त्रिकोणमिति के सूत्र सहेजे l
हम अवकल हो जाते थे ,
फ़िर भौतिकी विद्युत को सोचे ,
ट्रांसफार्मर को हम पढके ,
धारा के सिद्धांत समझ जब ,
फूले नहीं समाते थे l
वो दौर गया ,
कॉलेज में एडमिशन पाके ,
पापा ने जो फोन दिलाया ,
वैश्विक सुख जब हमने पाया ,
पहली दफा फ़िर इश्क लड़ाया ,
सपनों को भी खूब सजाया ,
ना जाने वो कॉलेज के दिन ,
कैसे कट गए समझ न आया ,
वो दौर गया ,
मीठी बाते मीठी यादें ,
सतना के उन गलियारो में ,
या फिर रीवा ए पी एस मे ,
व्यंकटेश या पशुपति जी मे ,
महेश्वरी के होटल में ,
चाय से इश्क या इश्क से चाय ,
दोस्ती यारी या अवारी ,
सेमेस्टर टेस्ट के आजाने से ,
मनोज तिवारी के चरणों में ,
झुककर कैसे प्रश्न बनाये ,
अनिल कुमार से मूल समझकर ,
रातो रातो उनको लिखकर ,
जैसे तैसे ओ दिन बिताये l
वो दौर गया ,
केमिस्ट्री के जटिल बॉन्ड में ,
क्या तोड़े क्या नया बनेगा ,
ऊर्जा कितनी वो छोड़ेगा ,
लैब में बस ये गणित लगाये ,
सोडियम से हम आग जलाये ,
जादू नहीं ये है विज्ञान ,
घर घर जाके सबको बताए ,
कितना सुन्दर लगता था ना ,
बचपन भरा वो यौवन अपना ,
एटम के हम बॉन्ड बनाए ,
अपना बंधन जब फ़िर टूटे,
अपनी हिंदी मां की शरण में ,
क्रांति मैम से साहित्य को गाए ,
वो दौर गया ,
साहित्य विज्ञान का बेजोड जोड़ ,
दो बॉन्ड की करनी कहिये ,
एक जो हम लैब में तोड़े ,
एक हटा दूसरे को जोड़े ,
कॉरबन नाइट्रोजन ऑक्सीजेन
ऐसे जो हम खेल थे खेले ,
बायो वाली साहब निकली ,
हमसे ज़्यादा जो थी एक्टिव ,
फिर पढते साहित्य सही था ,
तुलसीदास जी दिल में बस गए ,.
कबीरदास का वो फ़क्कड़पन ,
प्रेमचंद सी सघन वेदना ,
अज्ञेय का नाम देखकर
दिल से जो किलकारी फूटी ,
ऐसी ऐसी कविता फूटी ,
वो दौर गया
वो दौर गया ......
तेजप्रकाश पाण्डेय ✍️ school college life