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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

कॉलेज लव -वो दौर गया

वो दौर गया ,
हम चुपके-चुपके कहते थे ,
अपनी ख्वाहिश अंक समा ,
बस सहमे सहमे रहते थे ,
दिल की अनबन या कोई चुभन ,
शब्द घाव या प्रीत सघन ,
ख्वाहिश अपनी या मीठे सपन ,
हम दिल में सजोये रहते थे l

वो दौर गया ,,
एक- एक रिश्ता वो कैसे भी ,
हो जन्मजात या दिल से सृजित ,
हो याराना या महबूबा ,
हो बचपन की संगोष्ठी या ,
फिर हो वो सम्मान महति l
हम उनको सोचा करते थे ,
हम उनका सोचा करते थे ,
दिल से निभाया करते थे l

वो दौर गया ,
स्कूल में पढकर फिर घर आकर ,
अंकगणित और बारहखड़ी में ,
थोड़ी प्रश्नावली विज्ञानो मे ,
थोड़े थोड़े गीत गजल में ,
दादी के मीठे भजनो में ,
मम्मी के लोरी गानो में ,
छिपकर जब सो जाते थे l

वो दौर गया ,
समाकलन मे उल्झे उल्झे ,
बीजगणित के जटिल प्रश्न में ,
त्रिकोणमिति के सूत्र सहेजे l
हम अवकल हो जाते थे ,
फ़िर भौतिकी विद्युत को सोचे ,
ट्रांसफार्मर को हम पढके ,
धारा के सिद्धांत समझ जब ,
फूले नहीं समाते थे l

वो दौर गया ,
कॉलेज में एडमिशन पाके ,
पापा ने जो फोन दिलाया ,
वैश्विक सुख जब हमने पाया ,
पहली दफा फ़िर इश्क लड़ाया ,
सपनों को भी खूब सजाया ,
ना जाने वो कॉलेज के दिन ,
कैसे कट गए समझ न आया ,

वो दौर गया ,
मीठी बाते मीठी यादें ,
सतना के उन गलियारो में ,
या फिर रीवा ए पी एस मे ,
व्यंकटेश या पशुपति जी मे ,
महेश्वरी के होटल में ,
चाय से इश्क या इश्क से चाय ,
दोस्ती यारी या अवारी ,
सेमेस्टर टेस्ट के आजाने से ,
मनोज तिवारी के चरणों में ,
झुककर कैसे प्रश्न बनाये ,
अनिल कुमार से मूल समझकर ,
रातो रातो उनको लिखकर ,
जैसे तैसे ओ दिन बिताये l

वो दौर गया ,
केमिस्ट्री के जटिल बॉन्ड में ,
क्या तोड़े क्या नया बनेगा ,
ऊर्जा कितनी वो छोड़ेगा ,
लैब में बस ये गणित लगाये ,
सोडियम से हम आग जलाये ,
जादू नहीं ये है विज्ञान ,
घर घर जाके सबको बताए ,
कितना सुन्दर लगता था ना ,
बचपन भरा वो यौवन अपना ,
एटम के हम बॉन्ड बनाए ,
अपना बंधन जब फ़िर टूटे,
अपनी हिंदी मां की शरण में ,
क्रांति मैम से साहित्य को गाए ,

वो दौर गया ,
साहित्य विज्ञान का बेजोड जोड़ ,
दो बॉन्ड की करनी कहिये ,
एक जो हम लैब में तोड़े ,
एक हटा दूसरे को जोड़े ,
कॉरबन नाइट्रोजन ऑक्सीजेन
ऐसे जो हम खेल थे खेले ,
बायो वाली साहब निकली ,
हमसे ज़्यादा जो थी एक्टिव ,
फिर पढते साहित्य सही था ,
तुलसीदास जी दिल में बस गए ,.
कबीरदास का वो फ़क्कड़पन ,
प्रेमचंद सी सघन वेदना ,
अज्ञेय का नाम देखकर
दिल से जो किलकारी फूटी ,
ऐसी ऐसी कविता फूटी ,
वो दौर गया
वो दौर गया ......
तेजप्रकाश पाण्डेय ✍️ school college life




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Waah bahut khoob sir ji aapne poora daur ek minute me remind karwa diya bijganit,ankganit,bhautiki,chemistry...aur uske baad ant m Kabir,tulsidas,premchand aur agyey ji ke samne sab kuch fikar pad gaya....antim panktiyon ki jay ho...

तेज प्रकाश पांडे replied

Thanks mitra

तेज प्रकाश पांडे said

Dhanyawad Ashok ji

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