वो कहते थे अक्सर मुझसे, पीने दो अपनी आंँखों से
मयकशी का मजा यहीं है, मुझे क्या गरज़ मयख़ानों से
बात करती हो तो लगता है ऐसे, फूल झड़ते हैं जैसे
बिखर ही जाती है ख़ुशबू, क्या लेना बहारों से
यूँ ही झटकती रहो तुम, अपनी भीगी जुल्फों को
सराबोर हो जाऊंगा मैं, बरसे न बरसे पानी घटाओं से
बदन पे सितारे लपेटे जब चलती हो, हर शब साथ मेरे
फीकी लगती है वो शुआएँ, जो आती है आसमानों से

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




