बने ना बात तो क्या मीलने का मजा
धड़कने कुछ ना कहे तो ताल्लुक कैसा
जो बगावत को दावत ना दे मामला क्या
जो हल ना कर शके वो आदमी कैसा
जो क़ुरबानी ना मांगे वो चाहत कैसी
जो इश्क़ में मीट ना जाये आशिक़ कैसा
होट थरथराते रहे और हसीं निकल जाये
फिर डर-डर के जीना ये मसला कैसा
अब ये आलम हे दोस्त आते जाते नहीं
कोई रुकता ही नहीं वो दोस्ताना कैसा
के बी सोपारीवाला