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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वह बारिश जैसी ही तो थी... ताज मोहम्मद

इस वर्ष बरखा की पहली बूँदों ने जब स्पर्श किया
मेरे तन मन को...
उसके जीवन की यूँ ही ना जाने कितनी स्मृतियाँ
याद आ गयीं थींं मेरे मन को...

वह बारिश जैसी ही तो थी...
चंचल मन से निश्चल एक लड़की...

जीवन के हर पल में वह बूंदों सी बरसती थी...
उसके आगमन को सबकी ही अखियाँ तरसती थी...

चंचल,उत्कल उसकी होंठों की वह मुस्कान।
ना जाने कितनी ख्वाहिशें उस पर थी कुर्बान।

क्या बताऊँ वह सोंधी सोंधी सी उसके तन की भीनी
सी खुशबू किसके जैसी थी...
जो आती है महक बरखा की पहली बूंदो के माटी के कणों को स्पर्श करने पर,वैसी थी...

अविचल जल की धारा जैसी उसकी
पदचाप थी।
उसके मेरे ग्रह के गमन करने पर मेरी बदलती
रक्तचाप थी।

वह बारिश जैसी ही तो थी...
चंचल मन से निश्चल एक लड़की...

यूँ वह मेरी अम्मा का उसके द्वारा निःस्वार्थ
ख्याल रखना।
पिता जी पर झूठा क्रोध दिखा कर बीड़ी सिगरेट से दूर रखना।

यह सब याद है मुझे उसके कृत्य
व्यक्तित्व के..
परिपूर्ण थी वह सब गुणों
में नारित्व के...

पढ़ती थी वह विद्यालय में मेरे संग ही
एक कक्षा में।
होशियार ना थी वह इतना अधिक
शिक्षा में।

अल्हड़ सी थी वह अपनी सहेलियों के समूह में
सबसे अलग।
बड़ो बूढ़ो की सेवा में उसके हृदय में जलती थी हमेशा इक अलख।

वह बारिश जैसी ही तो थी...
चंचल मन से निश्चल एक लड़की...

फिर गाँव मे पढ़ाई खत्म करके मैने दाखिला लिया शहर के एक कॉलेज में...
वह लड़की थी शायद इसी कारण रह गयी
थी गाँव घर में...

अकारण ही कभी-कभी उस्की मुस्कुराहट याद,
आ जाती थी।
तब उसको लेकर मेरे हृदय में थोड़ी पीडा,
आ जाती थी।

अभी पिछले ही माह मुझको अनुभूति हुई थी,
अपने हृदय में उसके प्रति प्रेम की...
ना ज्ञात था मुझे भी,
कब से वह बन गयी थी प्रीत मेरे हृदय की...

इस बार गांव के गमन पर उसको मैं अपने इस
प्रेम से अवगत करा दूंगा।
यदि दे देगी वह अपनी स्वीकृति तो झटपट उससे
ब्याह रचा लूंगा।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut bahut bahut pyari rachna 🙏🙏

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