खुद से खुद की हो शिकायत कभी कभी
खुद पर भी हो इतनी इनायत कभी कभी I
ख्वाहिशें हैं सबकी बस खुशी हमको मिले
अब गमों भी कुछ तो हो चाहत कभी कभी I
तोड़ लेते फूल खिलते शाख से हरदम मगर
कांटो की भी हो अब हिमायत कभी कभी I
दास पढते लफ्जों की ही किताबें सारे लोग
लहजे की है पढ़ लेना ये इबारत कभी कभी I
खंडहर वीरान हैं सन्नाटे भरे सब शीश महल
प्यार के आदाब से सजती इमारत कभी कभी II